Saturday, June 25, 2011

यज्ञ


जैसे स्वप्न में हम एक से अनेक बन जाते हैं, ऐसे ही एक मूल से सारा जगत बना है. हम जहाँ से आये हैं जब उस मूल को भूल जाते हैं, अपने को एक अलग इकाई मान बैठते हैं, इससे स्वार्थ उत्पन्न होता है. स्वार्थ ही दुःख का कारण है. जीवन को एक यज्ञ मान कर यदि हम सामूहिक चेतना का विकास करें, अपनी समृद्धि का लाभ अपने आस-पास के लोगों को भी मिले ऐसा भाव रखें. समत्वभाव से सुख-दुःख का सामना करें, तो जीवन एक उत्सव बन सकता है.

2 comments:

  1. Basic ingredient of us are one .Life and its aspirations are the same throughout this planet .
    "EK NOOR SE SAB JAG UPJYO KAUN BHALE KAUN MNDE "also "EH HAU ONKAAR ".
    Good write up ,socially provocative and creative .

    ReplyDelete
  2. सच अहि स्वाएर्थ दुखों का कारण है ...

    ReplyDelete