Thursday, July 7, 2011

प्रेम और मोह

अगस्त २००० 
प्रेम एक व्यापक तत्व है, समुन्दर की तरह विशाल और आकाश की तरह निस्सीम ! जहाँ भी, जिसके भी हृदय में प्रेम होगा वह सबके लिये, प्राणी मात्र के लिये होगा. मोह एक संकीर्ण धारा की तरह है. मोह बंधन में डालता है जबकि प्रेम मुक्त करता है. नीला आकाश हमारी आत्मा का मूल स्वभाव है, स्वच्छ, निर्मल, मुक्त और असीम. विचारों के बादल उसे आच्छादित कर भी लें तो भी हमें उसकी स्मृति को बनाये रखना है प्रतिक्षण, प्रतिपल ! हमारा मन जो चारों दिशाओं में बिखरा-बिखरा सा रहता है उसे एकत्र करना है, एक रूप देना है. यह संसार जैसा हमें दिखाई देता है वास्तव में वैसा है नहीं. पल-पल बदलते इस संसार को बस साक्षी भाव से देखते जाना है. प्रतिक्रिया ही दुःख का कारण है, देर-सबेर सत्य अपने-आप ही सम्मुख आ जाता है, सत्य की स्थापना नहीं करनी पड़ती वह तो स्वयंभू है. 

1 comment:

  1. प्रेम ही तो जीवन है ,उसके बिना जिंदगी का कोई अर्थ नही. मोह प्रेम को ढक देता है.पर सांसारिक जीवन में मोह से बचना आसान नही है.

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