Monday, July 25, 2011

जागरण


मई २००१ 
उठ जाग मुसाफिर भोर भई” यह गीत बचपन में प्रभात फेरी में गाते थे पर इसमें किस जागरण कि बात कही गयी है तब यह समझ नहीं आता था. संत बताते हैं कि जागना है अपने जीवन के प्रति... कुछ बनने की दौड़ में जो द्वंद्व हम भीतर खड़े कर लेते हैं उनके प्रति. अकड़ जो हमारे मन को जकड़ लेती है बेहोशी की निशानी है, खाली मन जागरण की, क्योंकि मन का स्वभाव ही ऐसा है कि इसे किसी भी वस्तु से भरा नहीं जा सकता इसमें नीचे पेंदा ही नहीं है, तो क्यों न इसे खाली ही रहने दिया जाये व्यर्थ के झंझट से भी छूटे, मुक्ति का अहसास उसी दिन होता है जब सबसे आगे बढ़ने की वासना से मुक्ति मिल जाती है. 

2 comments:

  1. मुक्ति का अहसास उसी दिन होता है जब सबसे आगे बढ़ने की वासना से मुक्ति मिल जाती है....सत्य वचन!!

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  2. सार्थक सोच.
    अपने आपकी सही प्रकार से खोज करना ही वास्तविक जागरण है.

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