Tuesday, July 19, 2011

ध्यान से ध्यान तक

 अप्रैल २००१ 
जीवन में साधना, स्वाध्याय व अनुशासन हो तभी मन का कोलाहल शांत हो सकता है और जब तक यह कोलाहल शांत नहीं होगा, ध्यान नहीं टिकेगा. ध्यान के लिये स्वयं को तैयार करना होगा, सभी कार्यों को थोड़ी देर के लिये तिलांजली देकर मन को हर तरह की तरंगों से मुक्त करना होगा, इस पथ पर जो भी चले उसे अपना अहं छोड़ ही देना होगा. सुख-दुःख, सर्दी-गर्मी तथा मान-अपमान में समता रखनी होगी. आधा घंटे के ध्यान से चौबीस घंटों के लिये ऊर्जा मिल सकती है, जो पुनः ध्यान में सहायक होगी. 

3 comments:

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  2. बहुत बढ़िया ढंग से ध्यान की महिमा बतायी है आपने,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  3. ध्यान की यही तो महिमा है.हम बस जरा सा ध्यान के लिए ध्यान दें फिर सारा ध्यान ध्यान खुदबखुद रख लेगा.

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