Thursday, November 24, 2011

प्रेम और सद्भावना


जुलाई २००२ 

उठा बगूला प्रेम का तिनका लिया उडाय
तिनका तिनके से मिला तिनका तिनके जाय
प्रेम में हम इतने हल्के हो जाते हैं कि नभ तक पहुँच जाते हैं. कृतज्ञता के भाव प्रकट होते हैं और प्रकट होता है एक ऐसा आनंद जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता. ईश्वर से हर पल एक डोर बंधी हुई महसूस होती है. इसके प्रमाण भी मिलने लगते हैं. वह अस्तित्त्व भी स्वयं को प्रकट करना चाहता है. दर्द में भी मुस्काने की कला मिल जाती है. क्रोध आने से पूर्व ही शांत होने लग जाता है. जाने कौन आकर समझा जाता है कि जो कहना चाहते हैं वह न कहकर कुछ ऐसा कहते हैं जो प्रेम को दर्शाता है. अर्थात प्रेम की पकड़ क्रोध से ज्यादा हो जाती है. सभी के प्रति मन सद्भावना से भर जाता है. कभी-कभी अश्रु भी बहते हैं पर इनमें भी कैसी प्रसन्नता है. ईश्वर भी हमारा साथ पसंद करता हुआ लगता है. हमारा साधारण मन उसके दिव्य मन के साथ एक हो जाता है. 

1 comment: