Saturday, December 10, 2011

सहज आनंद


जुलाई २००२ 
परमात्मा सब कारणों का कारण है, यह बात जब हमें पूर्णतया स्पष्ट हो जाती है तभी पूर्ण समर्पण संभव है. और तब हमारी कोई निजी इच्छा नहीं रह जाती. हमारे निज का सुख-दुःख, राग-द्वेष अर्थात पसंद-नापसंद का कोई महत्व नहीं रह जाता. हम उसी की इच्छा को सर्वोपरि मानते हैं, और उसकी इच्छा क्या है इसका पता भी वही हमें बताता है, कोई भी ऐसा कार्य जिससे हमारे सहज सुख, स्वाभाविकता में अंतर आये वह उसके विपरीत है. अपने सहज आनंद में रहते हुए हम उसके साथ रहते हैं. जब भी हम अपनी इच्छा पूर्ति में लग जाते हैं नीचे के स्तर पर आ जाते हैं और इसी से क्रोध, मोह आदि विकारों के शिकार बन जाते हैं. तो जीवन मुक्ति का अर्थ हुआ कामनाओं से मुक्ति, जिसे कुछ नहीं चाहिए उसे कोई दुःख नहीं दे सकता, मान की इच्छा, सुख की इच्छा, स्नेह पाने की इच्छा में यदि अवरोध आये तो क्रोध का जन्म होता है. ईश्वर को यदि हृदय में बसाना है तो मन को शुद्ध सत्व में रखना ही होगा. निरंतर परमात्मा से जुड़े रहकर हम उसी के स्तर पर जीते हैं, जहाँ कोई भय नहीं, भय भी कामना से ही होता है. द्वन्द्वातीत और गुणातीत होना है तो मूल से जुडना होगा. शेष वह स्वयं ही कर लेता है.   

3 comments:

  1. अनीता जी ,

    कोई भी ऐसा कार्य जिससे हमारे सहज सुख, स्वाभाविकता में अंतर आये वह उसके विपरीत है. अपने सहज आनंद में रहते हुए हम उसके साथ रहते हैं. जब भी हम अपनी इच्छा पूर्ति में लग जाते हैं नीचे के स्तर पर आ जाते हैं और इसी से क्रोध, मोह आदि विकारों के शिकार बन जाते हैं.

    बहुत सही पहचान बताई है आपने ...आपके अनुभव बहुत सार्थक दिशा दिखा रहे हैं इस पथ के रही को... शुक्रिया

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  2. मुदिता जी, आभार!

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  3. जिसे कुछ नहीं चाहिए उसे कोई दुःख नहीं दे सकता !

    हाँ दीदी पर ऐसा जरा होना जरा कठिन है ...असम्भव भी नहीं है ये भी जनता हूँ !

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