Friday, March 2, 2012

श्रद्धा मुक्ति का द्वार है



श्रद्धावान लभते ज्ञानं ! ईश्वर में, सत्य में, शुभ में, श्रद्धा हो तो वह सदा वर्तमान है. हमारे निकट है. साधना में उससे अभिन्नता का अनुभव हमारे मन को फूल सा खिला देता है. हमारे आसपास भी धीरे-धीरे परिवर्तन शुरू हो जाता है. वास्तविक जीवन तभी शुरू होता है जब हम अपने भीतर के आनंद को पा लेते हैं., स्वयं की प्रसन्नता के लिये जगत के मोहताज नहीं रहते, पूर्ण मुक्त हो जाते हैं. एकांत में रहने से जो भय भीत नहीं है, मनसा. वाचा, कर्मणा जो सदमार्ग पर स्थित है. अपने सुख-दुःख के लिये जो स्वयं उत्तरदायी है वही साधना के पथ पर आगे बढ़ सकता है.

6 comments:

  1. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय...... शुभकामनाएँ।

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  2. ईश्वर में, सत्य में, शुभ में, श्रद्धा
    EK EK SHABD APANE AAP MEN
    SHATYAM SHIWAM SUNDARAM KO ABHIWYAKT KARATA.

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  3. आप सभी का आभार व स्वागत !

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  4. मोनिका जी, स्वागत व आभार!

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