Sunday, March 4, 2012

कृष्ण कथा अमृत


जनवरी २००३ 

भागवद् महापुराण में कृष्ण की कथा है, बल्कि कहना चाहिए कि कृष्ण कथा का अमृत है भागवद्,  जिसे पढ़कर कृष्ण के प्रति अथाह प्रेम उमड़ता है. वह इतनी प्यारी बातें कहते हैं अपने ग्वालबाल मित्रों से, गोपियों से, सखा उद्धव से और मित्र अर्जुन से कि बरबस उनपर प्यार आता है. वह सभी को निस्वार्थ भाव से प्रेम करते हैं बिना किसी प्रतिदान की आशा के, एकांतिक प्रेम ! और जो उन्हें प्रेम करता है उसे वह अभयदान देते है, वह उनके निकट आकर निर्भय हो जाता है. वह सम्पूर्ण प्रेम, ज्ञान और प्रेम के आगार हैं.... वास्तव में वह जो हैं उसकी कल्पना भी कर पाना हमारे लिये कठिन है. हम एक बार प्रेम से उनका नाम भी उच्चारित करते हैं तो हृदय में कैसी हिलोरें उमड़ती हैं. उनका नाम और वह अभिन्न हैं. वह भक्त की हर बात सुनते हैं, सारी छोटी-बड़ी कामनाएं उन पर उजागर हैं, सारी कमियों के वह साक्षी हैं, उसका प्रमाद व लापरवाही भी उनसे छिपी नहीं है और भक्त का प्रेम भी....

3 comments:

  1. उनका नाम और वह अभिन्न हैं. वह भक्त की हर बात सुनते हैं, सारी छोटी-बड़ी कामनाएं उन पर उजागर हैं, सारी कमियों के वह साक्षी हैं, उसका प्रमाद व लापरवाही भी उनसे छिपी नहीं है और भक्त का प्रेम भी
    कृष्ण की लीला अपरम्पार ..

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  2. शायद तभी तो मायावान हैं कृष्ण .... उनकी भक्ति भी तो माया है इन्ही की ...
    आपको और परिवार में सभी को होली की मंगल कामनाएं ...

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  3. वीरू भाई व दिगम्बर जी, सचमुच कृष्ण की लीला का पार नहीं और माया तो उनकी दुस्तर है, जिसके पार जाना असम्भव तो नहीं पर बहुत दुर्लभ है, आभार!

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