Thursday, March 14, 2013

बुद्धं शरणम गच्छामि


भगवान बुद्ध के चार आर्य सत्य हैं- “संसार में दुःख है, दुःख का कारण है, कारण का निवारण है, एक अवस्था ऐसी है जहाँ कोई दुःख नहीं है”. यदि कोई संवेदनशील है तो पहले सत्य का अनुभव कर  सकता है, दुःख का तो सबको पता है पर जिन बातों को हम सुख मानते हैं उनका अंत भी दुःख में होता है, यह वह स्पष्ट देख पाता है, क्योंकि संसार द्वन्द्व के नियम से ही चलता है. विपासना ध्यान में हम अपने भीतर उतरते हैं, शरीर को देखते हैं, श्वास-प्रश्वास को देखते हैं. देखते-देखते मन की सच्चाईयों को देखने लगते हैं. मन विकार जगाता है, फिर दुःख होता है, जब विकार को त्यागता है तब शांत हो जाता है. जहाँ से विकार जगते हैं यदि हम उस मूल तक पहुंच जाएँ, कौन है हमारे भीतर, जो विकार जगाता है, क्या वह सत्य है, क्योंकि आत्मा तो स्वयंपूर्ण है, उसे जगत से क्या चाहिए, सत्य वही है, तो जो असत है वही विकार जगाता है, भीतर जाकर पता चलता है, वास्तव में वह है ही नहीं, मात्र प्रतीत होता है. 

4 comments:

  1. कितनी सच्‍ची बात कही आपने ...
    बहुत ही बढिया।

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  2. सदा जी, स्वागत है आपका..बुद्ध का ज्ञान अनुपम है

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  3. बहुत दिव्य और गहरी बात ....

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  4. जब भी बुद्ध को पढ़ता हूँ सोचता हूँ मन में बहुत गहरे भाव आते हैं और दुख क्षरित हो जाता है। उनका धरती पर आना मुझे अद्भुत लगता है। वो मेरे आराध्य नहीं हैं लेकिन उनके प्रति उतनी ही श्रद्धा है। क्राइस्ट का केवल एक पक्ष करूणा का है लेकिन बुद्ध के आयाम काफी विस्तृत है। वे एक साथ करुणा और विवेक का इस्तेमाल करते हैं।
    आपकी आध्यात्मिक पोस्ट जीवन में खोई हुई अनुभूतियों को जगाती हैं। आभार

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