Wednesday, April 24, 2013

एक ही जीवन रूप अनेक


 अगस्त २००४ 
 जीवन का उपवन कभी एक सा नहीं रहता, कभी वसंत तो कभी पतझड का सामना उसे करना ही पड़ता है, लेकिन इस परिवर्तन के पीछे भी जीवन स्वयं तो एक ही है, उस एक को स्थिर मानकर ही हम अस्थिरता का अनुभव करते हैं. मन है तो कभी उसमें संसार झलकता है कभी आत्मा, अब यह मन पर निर्भर करता है कि वह स्वयं को किस के साथ जोड़े. आत्मा से जुड़कर अपनी ऊर्जा को बचा सकता है, सहज रह सकता है, तब संसार में बिना आसक्ति के रहा जा सकता है. 

4 comments:

  1. बहुत ही सार्थक प्रस्तुति,आभार.

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  2. काश ये चित्त वृत्ति एकाग्र और निरुद्ध भी बने .

    जिसका स्वमान हनू हो वह हनू -मान होता है .जो मान(अहंकार ,अभिमान का मर्दन कर चुका है सदैव ही आज्ञा कारी है वह हनू -मान है .जो हर काम राम से पूँछ के करे इसीलिए पूंछ लिए है वह हनू -मान है .बढ़िया प्रस्तुति हनुमान जयंती पर . शुक्रिया अनिता जी .हनुमान जयंती मुबारक .
    स्वमान के टिकना स्वयं को आत्मा समझ ही दृष्टा बनना है खुद को काया मान लेने से देह अभिमान आता है .रावण पैदा होता है हमारे अन्दर विकारों का .

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  3. अब यह मन पर निर्भर करता है कि वह स्वयं को किस के साथ जोड़े....
    सत्य..

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  4. राजेन्द्र जी व राहुल जी, स्वागत है आपका..

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