Friday, August 16, 2013

इक राह मिले तुझ तक

जनवरी २००५ 
सुखमयी स्थिति हो और हम स्वयं को उसमें न फंसायें, दुखमयी स्थिति हो और हम उसमें  स्वयं को न उलझाएँ, यही साधना है. दोनों ही स्थितियों में हम साक्षी भाव में रहें तो मन की समता बनी रहेगी अन्यथा मन की उर्जा व्यर्थ ही नष्ट होगी क्योकि न सुख टिकने वाला है न दुःख ही. प्रतिक्षण इस संसार में हजारों जन्म लेते है औए हजारों मरते हैं, कीट-पतंगों से लेकर मानव तक में चैतन्य है, मानव इस बात को जान सकता है और सदा के लिए सुख-दुःख के पार हो सकता है. परमात्मा का यह खेल रचा हुआ है जो ज्ञान के साथ इसे खेलते हैं वे मुक्त कहलाते हैं अन्यथा बंधन में पड़ा मनुष्य अपने को दुखी बनाता है. भीतर के आनन्द के स्रोत से वह वंचित ही रह जाता है. मन की धारा जब भीतर की ओर बहती है तब वह  राह मिलती है जो उस तक ले जाती है.


1 comment:

  1. बंधन में पड़ा मनुष्य अपने को दुखी बनाता है. भीतर के आनन्द के स्रोत से वह वंचित ही रह जाता है. मन की धारा जब भीतर की ओर बहती है तब वह राह मिलती है जो उस तक ले जाती है.

    एक यथार्थ

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