Thursday, September 12, 2013

सर्वे भवन्तु सुखिनः

फरवरी २००५ 
साधक का ध्येय होता है मन, वचन, तथा वर्तन से किसी को दुःख न हो, हमारे भीतर जब गहराई आती है तो कोई बात कहीं जाएगी नहीं, अन्यथा हम गोपनीय बातों को भी जगजाहिर कर देते हैं. लोगों का विश्वास तभी तक होता है जब तक उन्हें ज्ञात है कि यहाँ दिल खोल देने से कोई समस्या नहीं है, यहाँ बातों को सहज स्वीकरा जायेगा. हमारे भीतर कई दुर्गुण हैं, और कुछ सद्गुण भी हैं पर यदि एक भी सद्गुण हमारे भीतर है और हम उसे ही पुष्ट करते जाते हैं तो सारे दुर्गुण उसके सामने बौने पड़ जाते हैं. सजगता का सद्गुण यदि हमने अपना लिया तो अनुशासन का पालन सरल हो जाता है. हमें कहाँ जाना है, क्या करना है, क्यों करना है, कैसे करना है, ये सारे सवाल अनुत्तरित नहीं रह जाते. तब जीवन गतिमय हो जाता है, शिथिलता नहीं रहती, समय की कीमत का ज्ञान होता है. परमात्मा की शक्ति सदा मार्ग दिखाती है और प्रेम भी बरसाती है, प्रेम वहीं है, जहाँ सजगता है, सजगता वहीं है जहाँ सरलता है, सरलता वहीं है, जहाँ चित्त की शुद्धि है और चित्त शुद्ध तभी होता है जब भक्ति का उदय होता है, भक्ति तभी टिकती है जब भीतर किसी को दुःख पहुँचाने की सूक्ष्म वासना भी न रहे. 

4 comments:

  1. sarve santu niramayah ....bahut sunder v sarthak aalekh ...Anita ji .

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  2. अति सूधो सनेह का मारग है .....सावधानी हटी दुर्घटना घटी ,ज़िन्दगी में फोकस ,समकेंद्रण बहुत ज़रूरी है। एक लोकोमोटिव की भाप जब फोकस में होती है पूरी रेल को खींच ले जाती है और बिखर जाए तो काम न आये।

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  3. मनसा वाचा कर्मणा हम एक रहें नेक रहें,इसी में सबका कल्याण है ।

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  4. अनुपमा जी, वीरू भाई व शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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