Thursday, December 12, 2013

करणीय होता रहे त्याज्य जाये छूट हमसे

मई २००५ 
ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में हम उसी के प्रतिनिधि हैं, उसने हमें अपने सा सिरजा है, इस जगत में हम अमृत पुत्रों के समान निडर, निर्भीक तथा प्रेम भरा जीवन व्यतीत कर सकते हैं. मोह और प्रमाद के कारण ही हम ऐसा नहीं कर पाते और अपनी अपार क्षमताओं से वंचित ही रह जाते हैं. वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति के साथ स्वयं को एक मानना ही मोह है. प्रयत्न पूर्वक जो करना चाहिए उसकी विस्मृति ही प्रमाद है. धर्म को जानते हुए भी उसकी ओर न चलना, अधर्म को जानते हुए भी उससे दूर न जाना भी प्रमाद है. मन व इन्द्रियों की व्यर्थ चेष्टा का नाम भी प्रमाद है. मोह और प्रमाद से मुक्त हुई आत्मा ही सतोगुण में स्थित होती है. सात्विकता का फल है निर्मलता, रजोगुण से मोह बढ़ता है, जिसका फल है दुःख. तमोगुण का फल अज्ञान है. धीरे-धीरे हमें सतोगुण से भी पार जाना है, क्योकि ये तीनों गुण एक दूसरे में बदलते रहते हैं. कृष्ण कहते हैं गुणातीत ही उनका सच्चा भक्त है.


5 comments:

  1. वह शक्ति हमें दो दया-निधे कर्तव्य मार्ग पर डट जायें। पर-सेवा पर-उपकार में हम निज जीवन सफल बना जायें ।

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  2. कृष्ण कहते हैं गुणातीत ही उनका सच्चा भक्त है....

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  3. शकुंतला जी, धीरेन्द्र जी व राहुल जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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