Tuesday, February 25, 2014

श्रद्धा रूपी बेलि फूले जब

अगस्त २००५ 
साधना के द्वारा पहले मन से हमें हृदय की ओर जाना है, भाव जगत में जाना है, अंततः भाव से भी परे शून्य में जाना है. एक बार इस शून्यता का अनुभव हो जाने के बाद मन सदा ही उससे जुड़ा रहता है. जगत में उतना ही व्यवहार करता है जितना आवश्यक हो. श्रद्धा तथा विश्वास के सहारे–सहारे वह ऊपर चढ़ता है. यह विश्वास कि वह सदा हमारे साथ है, हमें अनेक संकटों से उबार लेता है. शास्त्र हमें प्रेरणा देते है, संतजन प्रेम देते हैं और हमारे मन में श्रद्धा जितनी दृढ होती है, कृपा का अनुभव उतना ही अधिक होता है. 

1 comment:

  1. एक बार इस शून्यता का अनुभव हो जाने के बाद मन सदा ही उससे जुड़ा रहता है....
    एकदम सही कहा आपने.. मुझे भी इसका एसएस होता है...

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