Thursday, June 12, 2014

हर पल कोई साथ सदा है

अप्रैल २००६ 
एक समय ऐसा आता है, जब साधक को लगता है कि उसके जीवन की कहानी का सूत्रधार कहीं बैठ-बैठा इसके पन्नों को खोल रहा है, बाद में कुछ घटने वाला है इसके लिए वह पहले पृष्ठभूमि तैयार करता है. सदा ही ऐसा होता आया होगा पर पहले सजगता नहीं थी. ईश्वर को अपने भक्तों का अहंकार जरा भी पसंद नहीं है, प्रकृति को भी हमारा प्रमादी रहना पसंद नहीं है, तभी तो उसके नियमों के विपरीत चलने पर हमें उसका परिणाम भुगतना ही पड़ता है. जो हम दूसरों के साथ करते आए हैं, वही जब खुद के साथ घटने लगता है तभी हम सीखते हैं.  


5 comments:

  1. बिल्‍कुल सच कहा

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    1. ललित जी व सदा जी, स्वागत व आभार !

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  2. " तेरा सॉईं तुज्झ में ज्यों पुहुँपन में वास ।
    कस्तूरी के मिरग ज्यों फिरि- फिरि ढूँढै घास।"
    कबीर [कल जिनकी जयन्ती थी ]

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    1. शकुंतला जी, कबीर जयंती की शुभकामनाएं !

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