Saturday, March 28, 2015

रामराज्य हो अपने भीतर

अगस्त २००८ 
ओशो ने कहीं कहा है सतयुग और और कलियुग दोनों साथ-साथ चलते हैं, हमारे ऊपर निर्भर है कि हम किस युग में रहना चाहते हैं. हमारा जीवन अंधकार से भरा है अथवा प्रकाश से यह हमारे ऊपर निर्भर है. राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर आदि आज इसलिए पूजे जाते हैं क्योंकि उन्होंने सतयुग में रहना चुना, उनके साथ ही रावण, कंस तथा अँधेरे में रह रहे लोग भी थे. यदि कलियुग न हो तो सतयुग का क्या महत्व रहेगा ? नजीर की एक कविता है ‘आदमीनामा’, यह कविता आदमी की फितरत को बयाँ करती है. आदमी कितने रंग बदलता है, रक्षक भी वही है, भक्षक भी वही. कभी वह प्रेम का पुतला बन जाता है तो कभी क्रोध का अंगार. कभी द्वेष से भर जाता है तो कभी ऐसा अनुरागी कि उसे देखकर फरिश्ते भी शरमा जाएँ ! यह मानव के हाथ में है कि वह किस मार्ग पर चले. 

2 comments:

  1. मानव अपनी बुद्धि से संचालित होता है .. विचारों से प्रभावित होता है ...
    राम की शरण हो तो जीवन सत्युक सा हो जाए ...

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  2. स्वागत व आभार दिगम्बर जी..

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