Wednesday, May 6, 2015

जीवन वन बने जब उपवन

जनवरी २००९ 
हम सबके जीवन का यह सत्य है कि यदि हम स्वयं समर्पण करने जायेंगे तो हमारा ‘मैं’ साथ चलेगा. यदि समर्पण टालते हैं तो मूढ़ता पुनः-पुनः घेर लेती है. जिससे दुःख मिलता है और हम स्वयं ही परमात्मा को पुकारने निकल पड़ते हैं, संग में अहम् चला आता है, सद्गुरु के द्वारा जब यह घटना घटेगी तो हम निरहंकारी रह सकते हैं. सद्गुरु विवेक प्रदान करता है. यह जीवन एक वन की नाई है, विवेक सम्राट है, वैराग्य सचिव है, शांति रानी है, जो सुंदर है, सद्बुद्धि युक्त तथा प्रिय है. सत्य, ज्ञान, आनंद, सुख, शक्ति, पवित्रता तथा प्रेम ये साथ हमारी मौलिक मांगें हैं. शक्ति शैलजा है वह भीतर की स्थिरता से प्राप्त होती है. व्याधि, जरा और मृत्यु से हम बच नहीं सकते किन्तु ज्ञान के बाद ये दुःख का कारण नहीं रहते, मुक्ति का साधन बन जाते हैं.  


2 comments:

  1. यह जीवन एक वन की नाई है, विवेक सम्राट है, वैराग्य सचिव है, शांति रानी है, जो सुंदर है, सद्बुद्धि युक्त तथा प्रिय है...................

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  2. स्वागत व आभार राहुल जी

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