Tuesday, May 26, 2015

शरण में उसकी जाना होगा


जो हम बोते हैं, वही हम काटते हैं. हमारे द्वारा हर पल कर्मों के बीज बोये जा रहे हैं. अहंकार से ग्रसित होकर जो कर्म हम करते हैं, उसमें तो खर-पतवार ही उगता है, उसमें कोई फल-फूल नहीं लगते. हमें अपने मन की भूमि पर ध्यान और साधना के बीज बोने हैं तब जो फसल मिलेगी वह शांति, प्रेम व आनंद के फूल खिलाएगी. ऐसी खेती के लिए संकल्प व श्रद्धा का होना आवश्यक है. कोई भी विकार मन में दुःख के कांटे उगाने के लिए सक्षम है, एक बार यदि संकल्प कर लिया कि इसके बस में नहीं होना है तो उससे मुक्त हुआ जा सकता है. जैसे सख्त जमीन को हल के द्वारा नर्म किया जाता है, शरणागति रूपी हल से मन की धरती को तैयार करना होगा. सद्गुरु के चरणों में झुका हुआ शिष्य ही अपने भीतर निरहंकार हो सकता है.

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