Tuesday, June 23, 2015

प्रेम समाया हर जर्रे में

मार्च २०१० 
यह ब्रह्मांड कितना विशाल है, हमारी आकाशगंगा में डेढ़ सौ अरब तारे हैं और न जाने कितने ग्रह, उपग्रह उन तारों के होंगे, ऐसी अनंत आकाशगंगाएं होंगी. बुद्धि चकरा जाती है पर जब ध्यान में खाली होकर बैठो तो वह अनंत जैसे अपना लगने लगता है, उसमें कहीं भी विचरो ! कैसा अद्भुत है यह ज्ञान. आत्मा जब अपने घर में होती है तो पूर्ण आनंद में होती है और परमात्मा जब अपने घर में होता है तो पूर्ण प्रेम में होता है. प्रेम से ही तो ये सारा साम्राज्य बना है, असंख्य निहारिकायें, असंख्य नक्षत्र, असंख्य पृथ्वियां और असंख्य जीव...कितना अनोखा है प्रेम का यह प्रपंच ! आत्मा बलशाली हो जाये तो मन नन्हे शिशु की तरह निरीह तकता है, बुद्द्धि अपनी मनमानी नहीं कर पाती. जीवन वरदान बन जाता है और सांसे जैसे अमृत हों जिन्हें घूँट-घूँट करर पीया जा सकता है.  

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