Wednesday, June 3, 2015

शक्ति की आराधना हो

जून २००९ 
उद्यमो भैरवः’ पुरुषार्थ करना ही मानव का कर्त्तव्य है. सत्य की खोज के लिए भी पुरुषार्थ करना पड़ता है और जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए भी. मानव रोज-रोज अपनी शारीरिक व मानसिक शक्ति को खो रहा है पर आत्मिक शक्ति सदा एक सी है और जो अपने निकट है, भीतर गया है, वही इस शक्ति का अनुभव कर सकता है. जीवन में कोई सचेतन लक्ष्य न हो तो जीवन एक सूखे पत्ते की तरह इधर-उधर डोलता रहता है. साधक वही है जो चिंतन के द्वारा स्वयं को सजग करता है. 

2 comments:

  1. सही कहा आपने जीवन हर पल डोलता रहता है- फ़रहत शहज़ाद साहब के कुछ शे’र याद आ गए-

    भटका भटका फिरता हूँ
    गोया सूखा पत्ता हूँ

    साथ जमाना है लेकिन
    तनहा तनहा रहता हूँ

    धड्कन धड़कन ज़ख़्मी है
    फिर भी हँसता रहता हूँ ॥

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  2. वाह ! बहुत खूबसूरत अश्यार हैं, आभार !

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