Wednesday, July 8, 2015

जागो....जागो रे

मई २०१० 
परमात्मा हर वक्त हमारे साथ है, सद्गुरु हर क्षण हमारे साथ है, आत्मा हर पल हमारे साथ है. वे कितने-कितने उपायों से हमें संदेश भेजते हैं, कितने उपाय करते हैं कि हमें ख़ुशी मिले, ऐसी ख़ुशी जो वास्तविक है, जो हमारे भीतर से आई है. वे इसके लिए कभी-कभी हमें दंड भी देते हैं. बाहर जब सुबह का सूर्य उगा हो, शीतल सुगन्धित पवन बह रही हो, पंछियों का मधुर गुंजार हो रहा हो, ऐसे में कोई बच्चा स्वप्न में रो रहा हो तो कौन माँ उसे झिंझोड़ कर जगा न देगी, वह उसे प्रसन्नता देना चाहती है. ऐसे ही परमात्मा हमें जगाते हैं, कष्ट भेजकर वह कहते हैं जो तुम्हारा मार्ग था वह सही नहीं था, देखो ऐसे जीओ.  

Tuesday, July 7, 2015

नित नूतन यह जग है सुंदर

मई २०१०
जीवन में विस्मय न होने का कारण है ज्ञान, इन्द्रियों का सीमित ज्ञान... स्मृति से निश्चय होता है और उससे हम जीवन को पुराने चश्मे से देखते हैं. नित नवीन परमात्मा का यह संसार भी नित नवीन है लेकिन हम अपने पुराने अनुभवों, सूचनाओं तथा मान्यताओं के कारण कुछ भी नवीनता नहीं देख पाते, न तो अपने भीतर न समाज में. ऐसे में जीवन से आनंद व सुख चले जाते हैं. विस्मय बना रहे इसके लिए जरूरी है कि हम स्वयं को जानकार न मानें, बालवत् हो जाएँ, भोले बन जाएँ, तभी हर समय जगत अपने पर से पर्दा उठाकर हमें नवीनता का दर्शन कराएगा ! जीवन रहस्यों से भरा हुआ है पर दुःख से पीड़ित मन की उस तक नजर ही नहीं जाती, भक्त उसे देख लेता है, ज्ञानी भी उसे देख लेता है और प्रतिपल आनंद की वृद्धि का अनुभव करता है. ऐसा सुख से भरा यह हमारा जीवन है कि जितना लुटाओ खत्म ही नहीं होता, पर मिथ्या अहंकार इसे जानने में बाधा बना बैठा है, अहंकार का भोजन ही दुःख है और आत्मा का भोजन ही सुख है.