Sunday, August 2, 2015

स्वतन्त्रता परम है

साधक को अपने आस-पास ऐसे वातावरण का निर्माण करना होगा, जिसमें हर कोई पूर्ण स्वतन्त्रता का अनुभव करते हुए अपने दिल की बात बिना किसी झिझक के कह सके, कुछ करना चाहे तो कर सके. जहाँ किसी भी तरह की तुलना या महत्वाकांक्षा से जीवन का सहज आनंद बाधित न हो. जीवन चाहे कितना भी संघर्ष पूर्ण हो, हरेक को अपने भीतर के आनंद को अनुभव करने का अवसर मिले, सुविधा मिले. जीवन इतना अनमोल है कि उसे साधारण बातों में खोया नहीं जा सकता.   

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