Monday, October 5, 2015

ज्ञान भक्ति दोनों ही तारें

मानव जीवन दुर्लभ है, इसी में कोई सारे दुखों से छुटकारा पा सकता है. ऐसा सुख पा सकता है जो कभी जाता नहीं है. सुबह से शाम तक किस-किस को दुःख दिया अथवा दुःख देने की भावना की, रात को सोने से पूर्व इसका लेखा-जोखा कर लें तो धीरे-धीरे कर्म बंधन कट जाते हैं. व्यवहारिक सत्य-असत्य का ज्ञान होने पर भीतर आग्रह नही रहता. जब एक-दूसरे के दृष्टिकोण को नहीं समझते तब ही कर्म बंधते हैं. ज्ञान मुक्त कर देता है. किसी को दुःख पहुंचाना पाप है और किसी को सुख पहुंचाना पुण्य है. दुःख पहुँचाने से यदि हृदय में पश्चाताप हो तो पाप कट जाता है. भक्ति का खजाना जिसके हृदय में भरा हो, उसे जग से क्या चाहिए. यह खजाना ऐसा है जो कभी खत्म नहीं होता. 

3 comments:

  1. बहुत सटीक और सारगर्भित चिंतन...

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  2. यह सच है कि कर्मानुसार ही फल मिलता है । सुन्दर - प्रस्तुति ।

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  3. ज्ञान और भक्ति दोनों का युग्म है । दोनों ही आवश्यक हैं ।

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