Monday, October 17, 2016

श्वास श्वास में वही बसा

१८ अक्तूबर २०१६ 
सुबह से शाम तक हम जो भी करते हैं, यदि सचेत होकर करें तो कितनी ऊर्जा बचा सकते हैं. सजग होते ही हमारे मन में एक ठहराव आने लगता है, जो आवश्यक को सहेजता है और अनावश्यक को जाने देता है. यदि पुराने संस्कारों वश कुछ ऐसे कार्य भी हम करते हैं जिनसे बाद में  हानि ही होने वाली है तो धीरे-धीरे वे संस्कार भी खत्म होने लगते हैं. क्योंकि जानबूझकर कोई आग में हाथ नहीं डालता. भगवान बुद्ध तो हर श्वास के प्रति सजग रहने को कहते थे. ध्यान देने से श्वास की गति तेज रह ही नहीं सकती और श्वास यदि धीमी है तो विचारों की गति स्वत: ही धीमी हो जाती है. 

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