Saturday, December 17, 2016

वही ऊर्जा पल-पल बहती

 १८ दिसंबर २०१६ 
हमारा मन एक अनंत स्रोत की तरह है जिसमें से अनवरत विचारों की गंध फैलती रहती है. मनमें सहज ही संकल्प उठते हैं, उनमें से अधिकतर दिशाविहीन होते हैं जिससे वे कर्मों में नहीं बदल पाते। यदि हम मन की इस ऊर्जा को एक सार्थक मोड़ दे सकें तो जीवन उस वृक्ष की तरह पल्लवित होता है जो हर रूप में जगत के काम आता है. मन की इस ऊर्जा का दोहन करने से ही कोई आंतरिक सन्तोष का अनुभव भी सहज ही करने लगता है.

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