Monday, December 26, 2016

खिले ध्यान का कुसुम जहाँ

२६ दिसम्बर २०१६ 
इस जगत में आने से पूर्व हम अकेले थे और यहाँ से जाने के बाद भी अकेले होंगे, इस जगत में भी नींद में हम अकेले होते हैं. ध्यान इसी अकेले होने की किंतु परम के साथ होने की कला है. नींद में हम अनजाने में अस्तित्त्व के साथ होते हैं, हमें उसकी उपस्थिति का भान नहीं होता, बस जगने के बाद भीतर ताजगी का अनुभव होता है. ध्यान में बोधपूर्वक हम अस्तित्त्व के साथ हो सकते हैं और तब हमें सारी सीमाएं टूटती हुई लगती हैं. भीतर एक अचलता का पता चलते ही भय मात्र से मुक्ति का अनुभव होता है. 

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