Tuesday, January 10, 2017

यायावर जब मन बन जाये

१० जनवरी २०१७ 
हम सभी कभी न कभी छोटी या बड़ी यात्रा पर निकलते हैं. कोई हफ्ते भर के लिए जा रहा हो या चार दिन के लिए, एक सूटकेस में सारा जरूरत का सामान ले लेता है. यात्रा में कुछ न कुछ तकलीफें झेलनी पड़ सकती हैं उसकी भी पूरी तैयारी मन को होती है. चार दिन जहाँ भी रहे, उस स्थान को अपना घर मान लिया पर छोड़ते समय तिल मात्र भी दुःख नहीं होता. जिस स्थान पर भी जाते हैं कम से कम समय में उस जगह को देख लेना चाहते हैं. यात्रा पर जाते समय हम अपने अच्छे वस्त्र ही लेकर जाते हैं. कम साधनों में भी स्वयं को टिप टॉप रखते हैं. यह जीवन भी तो एक यात्रा है. जरूरतें कम हों यानि घर में आवश्यक सामान ही हो तो घर कितना खुला-खुला सा  रहेगा और हवा व धूप को आने जाने के लिए कोई बाधा नहीं होगी. रोजमर्रा के जीवन में आने वाली तकलीफें तब सामान्य ही लगेंगी. अच्छे वस्त्र जो हम पता नहीं किन दिनों के लिए बचाकर रखे रहते हैं, रोज ही पहनेंगे और स्वयं को सदा फिट महसूस करेंगे, जब चाहे बाहर जाने के लिए तैयार. अपने शहर को देखने की भी हममें  उत्सुकता जगेगी, अपने आस-पास के कई स्थान जो यह कहकर अनदेखे ही रह जाते हैं कि बाद में देख लेंगे, वे भी देख लिए जायेंगे, और जब महायात्रा पर निकलने का समय आएगा तो ख़ुशी-ख़ुशी इस जगत से विदा लेंगे. यायावर मन सदा ही यात्रा में रहता है. 

No comments:

Post a Comment