Friday, January 6, 2017

हर कदम पर साथ है वह


अध्यात्म के पथ पर हम सजग होकर चलते हैं तो कोई अदृश्य हमारा हाथ थाम लेता है. लक्ष्य यदि स्पष्ट हो तो रास्ते  खुदबखुद बनते जाते हैं. मानव जन्म पाकर भी यदि परम को लक्ष्य नहीं बनाया तो हमने अपने भीतर की संपदा को पहचाना ही नहीं। भारत में जन्म लिया और सन्तों की हवा में श्वास भरे तो उनकी मस्ती को पा लेने की सहज प्यास भीतर क्यों न जगे? एक ललक उन जैसा होने की यदि मन में बीज की तरह पड़ गयी तो एक न एक दिन वृक्ष बन ही जाएगी, जिस पर भक्ति के फूल लगेंगे। परमात्मा की सत्ता पर अटल विश्वास और उससे एक संबन्ध, ये दो ही  इस मार्ग के पाथेय हैं, मार्ग मधुर है और संगी वह खुद है जिस तक हमें जाना है.

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