Sunday, February 26, 2017

एक यात्रा है मन की

२७ फरवरी २०१७ 
मानव का मन एक सीढ़ी है, जिससे ऊपर भी जाया जा सकता और नीचे भी. यह एक पुल है जिससे संसार तक भी जाया जा सकता है और परमात्मा तक भी. ऊर्जा एक ही है. जब मन नीचे के केन्द्रों में रहता है तब जिस दुःख और पीड़ा का अनुभव वह करता है, वह उसी ऊर्जा से निकली है जिससे ऊपर के केन्द्रों में रहकर सुख और आनन्द का भी अनुभव किया जा सकता है. हम शाश्वत सत्य की तरफ मुख करके भी चल सकते हैं और पल-पल बदलने वाले मिथ्या जगत की ओर भी. यह सदा याद रखना होगा कि मन को भरा नहीं जा सकता क्योंकि मन नाम ही उसी का है जो कभी संतुष्ट नहीं होता, अन्यथा जगत में इतना विकास न दिखाई देता. मन एक ऊर्जा है और उसका न विनाश किया जा सकता है न  उत्पन्न किया जा सकता है, हाँ उसको दिशा दी जा सकती है. दोनों दिशाएं हमारे भीतर ही हैं और पलक झपकते ही हम अपनी दिशा को बदल सकते हैं. कृष्ण कहते हैं दुराचारी से दुराचारी व्यक्ति भी किसी क्षण यदि सत्य की और बढ़ता है तो उसे भी सत्य प्राप्त होता है. आत्मा पूर्ण स्वतंत्र है कि वह कौन सा मार्ग चुने, परमात्मा अनंत धैर्यशाली है, वह सदा ही हमारी प्रतीक्षा करता है, वह सदा उपलब्ध ही है, हमें ही उसकी ओर दृष्टि करने की देर है. 

4 comments:

  1. ऊर्जा को सही दिशा देना ही जीवन की उपलब्धि है...सटीक चिंतन..आभार

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    1. स्वागत व आभार कैलाश जी !

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  2. मन एक ऊर्जा है और उसका न विनाश किया जा सकता है न उत्पन्न किया जा सकता है, हाँ उसको दिशा दी जा सकती है.

    मेरा मानना है कि मन को सिर्फ मिथ्या से बचाना होगा. फिर तो आप हर पल मन संग हैं.

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    1. सही कहा है आपने..मन को मिथ्या से बचाया तो वह सत्य की और अपने आप ही जायेगा क्योंकि तीसरा कोई मार्ग ही नहीं है..

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