Monday, April 24, 2017

स्रोत ऊर्जा का हो विकसित

 २५ अप्रैल २०१७ 
जीवन हमें नित नई चुनौतियाँ देता है, नये अवसर देता है, वह हर पल नये नये मार्ग सुझाता है, यदि हम नये को स्वीकारने में झिझकते हैं और उसी पुराने रास्तों  पर चलते रहते हैं तो जीवन वैसा ही बना रहता है. उसमें कोई सकारात्मक परिवर्तन आ ही नहीं सकता. प्रकृति शाश्वत होते भी नित नूतन है क्योंकि वह विरोध से घबराती नहीं, वह हर पल को वैसा ही स्वीकारती है और अपनी ऊर्जा को विरोध में नहीं विकास में खर्च करती है. हमारी ऊर्जा नकार में व्यर्थ ही जाती है और कई बार तो हम केवल अहंकार के कारण ही अपनी बात को गलत जानते हुए भी उस पर अड़े रहते हैं. कोई भी नकारात्मक भाव हमारी ऊर्जा के स्रोत को झुलसाने का काम करता है और सहजता व स्वीकार उसे पनपने का अवसर देता है. परमात्मा सहज भाव से हमें स्वीकार रहा है हर पल वह हमारे साथ है और यदि उसकी तरह हम भी जीवन को सहज ही खिलने का अवसर दें तो आनंद हमारा स्वभाव बन जायेगा.

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