Tuesday, September 12, 2017

स्वयं से जब परिचय हो जाये

१२ अगस्त २०१७ 
मन व इन्द्रियों की सहायता से हम बाहरी जगत को जानते हैं पर ‘स्वयं’ से अनजान बने रहते हैं. इस जगत को कोई कितना ही जान ले, सब कुछ कभी नहीं जान सकता. किन्तु ‘स्वयं’ को जिसने भी जाना है उसे यह अनुभव अवश्य हुआ है कि अब कुछ और जानना शेष नहीं है. आँख से हम देखते हैं, आँख दृश्य से पृथक है, देखने वाले हम भी दृश्य तथा आँख से पृथक हैं, अर्थात दृष्टा, दृश्य  तथा दर्शन सदा ही पृथक हैं. ‘स्वयं’ को जानना हो तो, जाननेवाले भी हम हैं, जानने का साधन भी हम हैं. ज्ञाता, ज्ञान तथा ज्ञेय जहाँ एक हो जाते हैं, वहीं ‘स्वयं’ का अनुभव होता है.  

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