Monday, December 18, 2017

मुक्त हुआ मन जब आशा से

१८ दिसम्बर २०१७ 
व्यक्ति, वस्तु अथवा परिस्थिति से किसी न किसी प्रकार की अपेक्षा रखना ही व्यक्ति के दुःख का कारण है, यह बात न जाने कितनी बार हमने सुनी है. मन यदि असंतुष्ट है तो इसका एकमात्र कारण है अपेक्षाओं का पूरा न होना. एक प्रकार से मन अपेक्षाओं का ही दूसरा नाम है. जब तक यह बात अनुभव से स्वयं को सही न जान पड़े तब तक अपेक्षा से मुक्त होना सम्भव नहीं है. इसीलिए जिस क्षण प्रमाद और अनावश्यक क्रिया से मुक्त होकर साधक निज स्वभाव में लौटना चाहता है कोई न कोई स्मृति संस्कार रूप में आकर उसे विचलित कर देती है. अशांति का हल्का सा धुआं भी मन को ध्यानस्थ नहीं होने देता. सजग होकर यदि उस संस्कार के पीछे के कारण को जानने का प्रयास करें तो कोई न कोई अपेक्षा ही उसके मूल में दिखाई देती है. 

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